हमारा असली जन्म तो तब होता है जब हमें अपने भीतर छिपे परमात्मा का अनुभव होता है । दुःख होता है कि कोई कोशिश ही नही करता कि यह अनुभव हो ।
यह जो प्रकृति है , यह परमात्मा का विराट रूप है । और यही विराट रूप हमारे भीतर में सूक्ष्म रूप में है । यह प्रकृति उस परमात्मा का प्रेम है और इसी प्रेम का झरना हमारे भीतर भी सुगबुगा रहा है । आपके भीतर में प्रेम का झरना फूट पड़े । बस यहीं से प्रार्थना का आरंभ होता है ।
आपके भीतर में अगर प्रेम पैदा हो गया , आपकी आँखे भर आईं , आपके भीतर में उसमे समा जाने , खुद मिट जाने की तैयारी हो तो बन्दगी पैदा हो जाएगी । प्रार्थना पैदा हो जाएगी ।
आओ , मिट जाने की तैयारी करो , उसके लिए अपने भीतर में पुकार पैदा करो । आपकी पुकार वह सुनेगा , तत्काल , उसी क्षण , बिना देरी के ।
यह जो प्रकृति है , यह परमात्मा का विराट रूप है । और यही विराट रूप हमारे भीतर में सूक्ष्म रूप में है । यह प्रकृति उस परमात्मा का प्रेम है और इसी प्रेम का झरना हमारे भीतर भी सुगबुगा रहा है । आपके भीतर में प्रेम का झरना फूट पड़े । बस यहीं से प्रार्थना का आरंभ होता है ।
आपके भीतर में अगर प्रेम पैदा हो गया , आपकी आँखे भर आईं , आपके भीतर में उसमे समा जाने , खुद मिट जाने की तैयारी हो तो बन्दगी पैदा हो जाएगी । प्रार्थना पैदा हो जाएगी ।
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