कल ही एक पुस्तक पढ़ रहा था । एक सन्यासी का ज़िक्र था उसमें । वह सन्यासी एक प्रकार से घुमक्कड़ साधु था । गांव दर गांव घूमता रहता था । जहाँ से भोजन मिल गया वहीँ कर लिया । जहाँ विश्राम को जगह मिली वहीँ विश्राम कर लेता था ।
प्रभु की तलाश थी , ध्यान सुमिरण भी समय से करता था ।
एक दिन वह एक गांव में पहुंच गया । दिन ढल चुका था । सभी दरवाज़े बन्द मिले पर गांव से बाहर उसे एक दरवाजा खुला हुआ मिला । वह उस द्वार पर पहुंचा तो एक व्यक्ति बाहर निकल कर कहीं जाने की तैयारी में लग रहा था । सन्यासी को द्वार पर खड़ा देख वह व्यक्ति रुक गया और सन्यासी को अंदर चल कर भोजन करने का आग्रह किया । सन्यासी ने उसका आग्रह स्वीकार कर लिया ।
प्रभु की तलाश थी , ध्यान सुमिरण भी समय से करता था ।
एक दिन वह एक गांव में पहुंच गया । दिन ढल चुका था । सभी दरवाज़े बन्द मिले पर गांव से बाहर उसे एक दरवाजा खुला हुआ मिला । वह उस द्वार पर पहुंचा तो एक व्यक्ति बाहर निकल कर कहीं जाने की तैयारी में लग रहा था । सन्यासी को द्वार पर खड़ा देख वह व्यक्ति रुक गया और सन्यासी को अंदर चल कर भोजन करने का आग्रह किया । सन्यासी ने उसका आग्रह स्वीकार कर लिया ।
वह व्यक्ति अकेला ही रहता था । उसने सन्यासी को भोजन करवाया और रात वहीँ रुकने का आग्रह किया । सन्यासी ने इस आग्रह को भी स्वीकार कर लिया । उस व्यक्ति ने सन्यासी के लिए बिस्तर बिछा दिया और कहा , " आप आराम से सोएं , मुझे अपने काम से बाहर जाना है । सुबह वापिस आऊंगा ।" " काम पर , इस वक्त " ?
" हाँ महाराज , मेरा काम रात को ही होता है ?
" कहीं चौकीदार हो ?
" नही महाराज , मैं एक। चोर हूँ , मेरा काम तो रात ही में चलता है , कल के लिये दाल रोटी का इंतज़ाम जो करना है , इसी लिए अभी जा रहा हूँ ।" यह कह कर वह चला गया ।
सुबह दिन नही हुआ था , द्वार खटका । सन्यासी ने उठ कर द्वार खोला तो उसी चोर को खड़े देखा जिसके घर में ठहरा था । चोर अंदर आया और सन्यासी से हाल चाल पूछा और पूछा कि कोई परेशानी तो नहीं हुई रात को ? सन्यासी ने उसे रात में जगह देने और भोजन के लिए धन्यवाद दिया और चलने की तैयारी में लग गया ।इस पर चोर ने कहा , " सुबह का हल्का नाश्ता वगेरह कर लें , फिर चले जाना । " सन्यासी ने हामी भर दी और चोर ने नाश्ता तैयार कर परोस दिया । बातों ही बातों में सन्यासी ने पूछा , " रात को कोई काम बना ? "
" नही महाराज , आज रात तो कामयाबी नहीं मिली । कल फिर कौशिश करूंगा , आज नही तो कल , कल नही तो कभी तो कामयाब हो ही जाऊंगा " .
सन्यासी को अपने भीतर में एक झटका लगा । सोचने लगा , " मुझसे तो यह चोर भला , कम से कम इसने हार तो नही मानी , उम्मीद रखता है कि आज नही तो कभी तो कामयाबी मिलेगी । मुझे जब ध्यान और सुमिरण में कामयाबी नहीं मिलती तो कई बार छोड़ कर बैठ जाता हूँ । " सन्यासी मन ही मन में खुद को धिक्कारने लगा और उस चोर को भी हाथ जोड़ कर कहा कि , " आप चाहे चोर हो , पर आपसे कभी उम्मीद न छोड़ने की सीख लेकर जा रहा हूँ । "
*****
हम में से बहुत ऐसे ही हैं । भजन सुमिरण में मन नही लगता , कामयाबी नज़र नही आती तो भजन बन्दगी छोड़ देते हैं और सोचते हैं कि पता नही रब्ब है भी या नही ।
उम्मीद हमेशां बनाए रखनी चाहिए । कभी तो कामयाब हो ही जाएंगे । सतगुरु पर से विश्वास नहीं खत्म होना चाहिए ।
आज इतना ही ।
बाकी फिर कभी ।
आपने ध्यान से पढ़ा ।
आपका धन्यवाद ।
कृप्या कमेंट में भी कोई नसीहत दें ।
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