Sunday, March 24, 2013

jeevit marna bhavjal tarna

एक समय की बात है कि एक पूर्ण संत महापुरुष जी के आश्रम में उन्ही के साथ रह रहे एक शिष्य ने अपना शरीर त्याग दिया .अभी शिष्य की साधना पूर्ण न हुई थी, उसे बाकी साधना पूरी करनी थी .पूर्ण संतो के शिष्यों को  अगला जन्म भी मनुष्य का ही मिलता है , पर उस शिष्य को अगला जन्म तोता का मिला , कारण था कि अंत समय उसका ध्यान एक तोते की तरफ था . संत जी ने अपनी दिव्यद्रिष्टी द्वारा तोते का जन्म लिए अपने शिष्य पर नज़र रखनी शुरू कर दी . तोता बना हुआ शिष्य एक धार्मिक व्यक्ति द्वारा  बाज़ार से   खरीद लिया गया व पिंजरे में बंद हो गया . संत जी तोता बने अपने शिष्य को ढूँढ़ते ढूँढ़ते वहीं पहुँच गये जहाँ वह पिंजरे में बंद था . गुरु महाराज ने देखा कि शिष्य [तोता ] बहुत प्रसन्न था .गुरु जी अपने शिष्य [ तोता ] पर दया दृष्टि डाली .शिष्य के  ज्ञान पर माया द्वारा डाला गया आवरण हट गया और उस तोता बने शिष्य को गुरु द्वारा द्वारा दिया गया सारा ज्ञान और उपदेश याद आ गया . शिष्य ने अपने गुरु को पहचान लिया .इतने मे ही घर का मालिक आया , उसने देखा कि उसके द्वार पर महात्मा खड़े है . घर का मालिक धार्मिक तो था ही , वह महात्मा जी को आदर सत्कार सहित घर के भीतर ले गया और एक आसन पर बिठाया . परिवार के अन्य सदस्य भी आ गए और धर्म चर्चा आरम्भ हुई . घर के मालिक ने पूछा कि "जन्म -  मृत्यु के बंधन कैसे कट सकते है , तथा किस उपाए से आत्मा  आजाद होकर अपने मालिक परम पिता परमात्मा से मिल सकती है ? "महात्मा जी ने उत्तर दिया " यह तो एक बहुत ही आसान  सी साधना द्वारा हो जाता है ". घर के मालिक ने कहा " आप वह साधना हमें भी बता दीजिये " . महात्मा जी ने कहा " यह तो बहुत ही सरल सी बात है मै क्या उत्तर दूं अपने तोते से ही पूछ लो , वह जानता है " .घर के सभी सदस्य बहुत हैरान हुए . महात्मा जी के कहने पर सभी वहां पहुचे जहाँ तोता पिंजरे में बंद था . महात्मा जी के कहने पर घर के मालिक ने तोते के सामने खड़े होकर दोनों हाथ जोड़ कर पूछा " मनुष्य कैसे जन्म मरण के बंधन काट कर अपने मालिक परम पिता परमात्मा को पा सकता है ? " यह सुनते ही तोता अचेत होकर पिंजरे में गिर गया . उसे पिंजरे से बाहर निकाला गया . उसकी गर्दन लटक गयी . उसे मरा मान कर घर के बाहर रख दिया गया . जैसे ही घर के सदस्य घर के भीतर जाने लगे तोता फुर्र से उड़ गया और सभी देखते रह गए . इस पर महात्मा जी ने उनसे पूछा , "क्या तुम्हे अपने प्रश्न का उत्तर मिला ? "सभी ने न  मे सिर हिला दिया   गुरु महाराज ने कहा " तुमने देखा कि तोता मरा नहीं था पर जीते जी मृत्यु के अभ्यास द्वारा वह इस लोहे के पिंजरे से आजाद हुआ  , इसी प्रकार जो जीव आत्मा जीते जी मरने की कला को सीख लेता है वह जन्म तथा मृत्यु के बंधन काट कर काल के बंधन से आजाद हो कर परम पिता परमात्मा को पा लेने का अधिकारी होता है " .तत्पश्चात घर के सभी सदस्यों ने जीते जी मरने की कला के रहस्य को समझा तथा स्वयं को धन्य माना .

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