Wednesday, March 27, 2013

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बहुत भयंकर  तूफान में घिरा हुआ एक जहाज समुद्र में जा रहा था । दूर दूर तक कोई किनारा नज़र न आ रहा था । सभी की निगाहें आकाश की तरफ उठी हुई थीं । शायद प्रभु से कोई आस लगा राखी थी । जहाज़ का कप्तान देख रहा था , कहीं कोई टापू , कोई पेड़ या कोई कोई उड़ता हुआ पंछी ही नज़र आ जाए ताकि जीवन की डूबती हुई आशा को किनारा मिल सके । धीरे धीरे जहाज़ डूबता हुआ डूब ही गया । 
उसी जहाज़ पर सवार दो व्यक्ति जिनकी जहाज़ पर ही मित्रता जहाज हुई थी एक साथ ही दो दिन और दो रात तैरते रहे । अपने अपने जीवन की आस छोड़ चुके दोनों मित्रों को काफी दूर आकाश में कुछ पक्षी उड़ते हुए दिखाई दिए । अंदाजा लगाया कि कहीं पास में ही धरती का टुकड़ा होगा अवश्य । तैरने की भी हिम्मत न थी । बहुत दूरी पर कुछ पेड़ दिखाई देने लगे दोनों मित्र जीवन की आस त्याग चुके थे , फिर हिम्मत बंधी और हिम्मत कर वहीँ पहुँच गए जहाँ पेड़ -पौधे लह लहा रहे थे । 
दोनों किनारे लगे । वहीँ से कुछ फल आदि तोड़ कर खाए और आराम किया । अपनी नींद पूरी की और दोनों ने  वहां का निरीक्षण किया । एक दिन के निरीक्षण के बाद पाया कि वह एक छोटा सा टापू था । वहीँ किनारे बैठ कर कुछ दिन  इंतजार करते रहे कि शायद कोई जहाज निकलता हुआ दिखाई दे । पर लगता था कि जहाज शायद उस तरफ कभी आते ही न थे । 
दोनों मित्रों ने पाया कि वहां कोई हिंसक पशु न थे इसी लिए वे बिना किसी डर के अकेले भी घूमने को निकल जाते थे । 
उन दोनों मित्रों में एक का नाम था जगत लाल  और एक का नाम था राम लाल । 
वहां कोई काम तो था नहीं , इस लिए दोनों मित्र भगवान से प्रार्थना करने में भी समय व्यतीत करने लगे । जगत लाल प्रभु से प्रार्थना करता की ," हे प्रभु तुने ही यहाँ पटका है , अब मेरी मदद भी कर । मैं चाहता हूँ कि तुम मुझे ऐसी शक्ति दो कि मैं यहाँ पर अपने रहने लायक जगह बना लूं , खेती बाड़ी कर लूं तथा रहने लायक मकान भी बना लूं ।"  प्रभु ने उसकी मदद की , उसे बुद्धि दी , उसने पत्थरों इत्यादि से औज़ार बनाये और खेती बाड़ी शुरू कर दी । एक दिन उसने पत्थरों आदि से  मकान भी बना लिया । जब उसका मकान बन गया तो जगत लाल ने भगवन से प्रार्थना की , कि ,"प्रभु मेरा मकान बन गया है , अब कृपा करके इस मकान को घर बना दो क्योंकि मेरा मकान वीरान है ,घर बन गया तो वीरानी अपने आप दूर हो जाएगी । प्रभु ने एक दिन उसकी प्रार्थना को सुना ।  ,एक औरत एक दिन तैरते हुए वहीँ किनारे पर आ लगी । उसने बताया कि वह अपने परिवार सहित विश्व यात्रा पर निकली थी । यहाँ से काफी दूर उनका जहाज़ भयंकर तूफ़ान की वज़ह से डूब गया और वह अकेली ही बची है । जगत लाल तथा राम लाल ने उसे सांत्वना दी , कुछ खाने को दिया । वह औरत बहुत थकी हुई थी इस लिए जल्दी सो गयी । जगत लाल जो रोजाना प्रभु से अपना घर बसाने के लिए प्रार्थना करता था , कहने लगा कि ," प्रभु ने मेरी सुन ली , शायद इसी लिए उसने ही इसे मेरा घर बसाने को मेरे लिए ही भेजा है । " राम लाल ने उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा ," वह सबकी सुनता है और हर इच्छा पूरी करता है , शायद उसी ने इस औरत को तेरे लिए ही भेजा है , अब तू अपना घर बसा । मुझे तो यहाँ नहीं रहना , मुझे तो अपने घर वापिस जाना है , क्योंके  यह पराया इलाका ,परायी जगह और पराया देश है , मुझे तो अपने वतन ही वापिस जाना है ,  मैं तो वहीँ वापिस जाने के लिए ही प्रार्थना करता हूँ । वह मेरी भी एक दिन जरूर सुनेगा , वह सबकी सुनता है । जगत लाल की प्रार्थना सुनी गयी और उसकी हर आस पूरी हुई खेती बाड़ी मकान इत्यादि उसने सब कुछ बनाया , अपना घर भी बसाया ,और बाल बच्चे भी हो गए । 
दूसरी तरफ राम लाल हर पल प्रभु से अपने घर वापिसी के लिए प्रार्थना करता । एक दिन उसकी भी सुनी गयी । काफी दूरी से एक जहाज जा रहा था राम लाल ने एक बहुत बड़ी झाड़ी को उखाड़ कर ऊंचा कर हिलाना शुरू कर दिया । जहाज़ पर सवार कुछ यात्रियों की नज़र पड़ी , कप्तान को सूचित किया गया कप्तान ने जहाज़ रुकवा कर एक जीवन रक्षक नाव को टापू की तरफ रवाना किया । नाव टापू के किनारे आ लगी । राम लाल ने नाविक को अपने साथ घटी सारी घटना बतायी । नाविक ने उसे वापिस चलने के आश्वासन के साथ ही वापिस चलने को कहा । राम लाल ने जगत लाल तथा उसके परिवार से भी कहा ,"बहुत अच्छा मौका है ,आप भी वतन वापिस चलें " पर जगत लाल ने उत्तर दिया ," मेरा घर तो अब यहीं बस गया है , कहाँ जाऊं अब ? मैं तो यहीं रहूँगा । राम लाल के समझाने पर भी वह वह वापिस चलने को तैयार न हुआ । राम लाल अकेला ही उस नाविक के साथ गया और उस जहाज़ पर चढ़ कर अपने वतन की ओर चला गया और एक दिन अपने घर पहुँच गया । अपने घर पहुँच कर ही उसे प्रसन्नता मिली । 
आईये इस कहानी को समझने की कौशिश करें । इस कहानी में जो टापू है , वह है हमारा मात लोक , यहाँ आकर सभी फसे हुए हैं और सभी यहाँ दुःख उठा रहे हैं ,पर फिर भी यहाँ से वापिस अपने घर नहीं जाना चाहते । कारण इस संसार जगत  का मोह नहीं टूट ता । 
इस कहानी में " अपना घर , अपना देश तथा अपना वतन " जो है वो है परम पिता परम आत्मा का घर जिसे सत लोक या सचखंड भी कहते हैं 
इस कहानी में जो नाव है वह है किसी संत महापुरुष की कृपा । और जो जहाज़ है वह है " नाम " ,जिसे किसी संत महापुरुष से ही प्राप्त किया जा सकता है । किसी महापुरुष ने इसे दीक्षा कहा है तो किसी ने उपदेश । इसी लिए बाबा नानक ने कहा ,"नानक नाम जहाज़ है , चढ़े सो उतरे पार " । जो इस जहाज़ पर चढ़ जाते है वे अपने घर , अपने वतन अपने देश वापिस पहुँच जाते हैं । इस कहानी में जो नाविक है वह है अपना कोई सत्संगी जो कि जहाज़ पर चढाने में काफी मददगार होता है । इस कहानी में जहाज़ का कप्तान जो है वह है कोई पूर्ण संत महापुरुष । 
 जगत लाल जो है वो है इस संसार जगत से प्यार करने वाला तथा राम लाल है परमात्मा से प्यार करने वाला मुझे उम्मीद है कि आप इस कहानी को समझने की पूरी कोशिश करेंगे । 
धन्यवाद । 



4 comments:

  1. ਮਃ ੩ ॥
    मः ३ ॥
    Third Mehl:
    xxx
    xxx

    ਨਾਨਕ ਤਰਵਰੁ ਏਕੁ ਫਲੁ ਦੁਇ ਪੰਖੇਰੂ ਆਹਿ ॥
    नानक तरवरु एकु फलु दुइ पंखेरू आहि ॥
    O Nanak, the tree has one fruit, but two birds are perched upon it.
    ਤਰਵਰੁ = ਰੁੱਖ। ਪੰਖੇਰੂ = ਪੰਖੀ।
    ਹੇ ਨਾਨਕ! (ਸੰਸਾਰ ਰੂਪ) ਰੁੱਖ (ਹੈ, ਇਸ) ਨੂੰ (ਮਾਇਆ ਦਾ ਮੋਹ ਰੂਪ) ਇਕ ਫਲ (ਲੱਗਾ ਹੋਇਆ ਹੈ), (ਉਸ ਰੁੱਖ ਉਤੇ) ਦੋ (ਕਿਸਮ ਦੇ, ਗੁਰਮੁਖ ਤੇ ਮਨਮੁਖ) ਪੰਛੀ ਹਨ,

    ਆਵਤ ਜਾਤ ਨ ਦੀਸਹੀ ਨਾ ਪਰ ਪੰਖੀ ਤਾਹਿ ॥
    आवत जात न दीसही ना पर पंखी ताहि ॥
    They are not seen coming or going; these birds have no wings.
    ਪਰ = ਖੰਭ।
    ਉਹਨਾਂ ਪੰਛੀਆਂ ਨੂੰ ਖੰਭ ਨਹੀਂ ਹਨ ਤੇ ਉਹ ਆਉਂਦੇ ਜਾਂਦੇ ਦਿੱਸਦੇ ਨਹੀਂ, (ਭਾਵ, ਇਹ ਨਹੀਂ ਪਤਾ ਲੱਗਦਾ ਕਿ ਇਹ ਜੀਵ-ਪੰਛੀ ਕਿਧਰੋਂ ਆਉਂਦੇ ਹਨ ਤੇ ਕਿਧਰ ਚਲੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ)

    ਬਹੁ ਰੰਗੀ ਰਸ ਭੋਗਿਆ ਸਬਦਿ ਰਹੈ ਨਿਰਬਾਣੁ ॥
    बहु रंगी रस भोगिआ सबदि रहै निरबाणु ॥
    One enjoys so many pleasures, while the other, through the Word of the Shabad, remains in Nirvaanaa.
    ਨਿਰਬਾਣੁ = ਵਾਸਨਾ ਰਹਿਤ, ਨਿਰਚਾਹ।
    ਬਹੁਤੇ ਰੰਗਾਂ (ਵਿਚ ਸੁਆਦ ਲੈਣ) ਵਾਲੇ ਨੇ ਰਸਾਂ ਨੂੰ ਚੱਖਿਆ ਹੈ ਤੇ ਨਿਰ-ਚਾਹ (ਪੰਛੀ) ਸ਼ਬਦ ਵਿਚ (ਲੀਨ) ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ।

    ਹਰਿ ਰਸਿ ਫਲਿ ਰਾਤੇ ਨਾਨਕਾ ਕਰਮਿ ਸਚਾ ਨੀਸਾਣੁ ॥੨॥
    हरि रसि फलि राते नानका करमि सचा नीसाणु ॥२॥
    Imbued with the subtle essence of the fruit of the Lord's Name, O Nanak, the soul bears the True Insignia of God's Grace. ||2||
    ਰਸਿ = ਰਸ ਵਿਚ। ਨੀਸਾਣੁ = ਨਿਸ਼ਾਨ, ਟਿੱਕਾ। ਕਰਮਿ = ਬਖ਼ਸ਼ਸ਼ ਦੀ ਰਾਹੀਂ ॥੨॥
    ਹੇ ਨਾਨਕ! ਹਰੀ ਦੀ ਕਿਰਪਾ ਨਾਲ (ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਮੱਥੇ ਤੇ) ਸੱਚਾ ਟਿੱਕਾ ਹੈ, ਉਹ ਨਾਮ ਦੇ ਰਸ (ਰੂਪ) ਫਲ (ਦੇ ਸੁਆਦ) ਵਿਚ ਮਸਤ ਹਨ ॥੨

    SGGS Ang 550

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  2. really nice written .
    thanks for giving comment & opinion

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  3. thanks to all visitors
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  4. बहुत बढ़िया

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