मार्ग दर्शक
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सुबह सूर्य की तरफ मुख हो तो परछाई पिछली तरफ बहुत लम्बी होती है ।
सुबह के सूर्य को अपना यह जन्म मान लो । हमे यह जन्म मिला , मुख परमात्मा की तरफ रखो पर याद रहे कि अपने ही किये हुए कर्म , तब के भी जब से सृष्टी अस्तित्व में आई , हमारे पीछे पीछे ही हैं जैसे कि हमारी परछाई । हम अपनी परछाई से चाह कर भी छुटकारा नही पा सकते , उसी प्रकार अपने किये हुए कर्मो से भी छुटकारा नही पा सकते । कर्म हमने किये , भुगतान हमी को करना है ।
बिना कर्मों का भुगतान किये हम मोक्ष को नही पा सकते । मुक्ति के लिए कर्म विहीन होना पड़ता है । कर्म विहीन होने का मार्ग गुरु के इलावा कोई नही सुझा सकता । गुरु द्वारा बताई गयी युक्ति ही आगे का मार्ग प्रशस्त करती है ।
कुछ लोग सोचते हैं कि गुरु की क्या जरूरत है ?
हम लोग छोटे छोटे काम सीखने के लिए किसी को भी उस्ताद यानि गुरु कहने से नही झिझकते , पर अध्यात्म के मार्ग के लिए मबिना गुरु बिना कैसे चल सकते है , जो कि जटिल मार्ग है ।
साइकिल मिस्त्री बनना हो तो किसी साइकिल के पुराने मिस्त्री की शरण लेनी पड़ती है , स्कूटर मकैनिक बनने हो तो भी । medicle लाइन में डॉक्टर बनना हो या फार्मासिस्ट , शरण गुरु की लेनी हो होगी पर जब परमात्मा प्राप्ति की बात आती है तो " उस्ताद की क्या जरूरत ? " ये डायलाग आम सुनने को मिल जाता है ।
एक व्यक्ति रात के अँधेरे में अपनी गाड़ी ( कार ) से जा रहा था । घुप्प अँधेरा था और उसकी गाड़ी की हैड लाइट खराब हो गयी । इस रास्ते पर वो आया भी पहली बार था , रास्ते की जानकारी न थी । तभी उसे घण्टी की आवाज़ सुनाई दी । यह घण्टी की आवाज़ एक बैल गाड़ी में जुते हुए बैल के गले में बन्धी हुई घण्टी की थी । बैल गाड़ी पास आई तो कार वाले ने उसे अपनी प्रॉब्लम बताई । गाड़ी वान् ने कहा , " चिंता न करो , मेरे पीछे पीछे चलते रहना , अँधेरे से बाहर रौशनी तक तो पहुंच ही जाओगे "
कार वाला बैल गाड़ी के पीछे पीछे चलता हुए अँधेरे स्थान से निकल कर रौशनी वाली जगह तक पहुंच गया , उसने बैल गाड़ी वाले को कई बार शुक्रिया कहा ।
आप सोचें , हम इस संसार में अपनी आवश्यकता अनुसार किसी के भी पीछे हो लेते हैं , हम नही देखते ऊँच नीच या जाति पात इत्यादि , पर जिस मार्ग पर " उसकी " प्राप्ति होनी है , हम उसके लिए मार्ग दर्शक की जरूरत ही महसूस नही करते ।
अगर मेरे लिखे से किसी के हृदय को चोट पहुंची हो तो क्षमा चाहूँगा ।
अगर पोस्ट अच्छी लगी है तो कमेंट बॉक्स में कमेंट जरूर लिखें ।
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सुबह सूर्य की तरफ मुख हो तो परछाई पिछली तरफ बहुत लम्बी होती है ।
सुबह के सूर्य को अपना यह जन्म मान लो । हमे यह जन्म मिला , मुख परमात्मा की तरफ रखो पर याद रहे कि अपने ही किये हुए कर्म , तब के भी जब से सृष्टी अस्तित्व में आई , हमारे पीछे पीछे ही हैं जैसे कि हमारी परछाई । हम अपनी परछाई से चाह कर भी छुटकारा नही पा सकते , उसी प्रकार अपने किये हुए कर्मो से भी छुटकारा नही पा सकते । कर्म हमने किये , भुगतान हमी को करना है ।
बिना कर्मों का भुगतान किये हम मोक्ष को नही पा सकते । मुक्ति के लिए कर्म विहीन होना पड़ता है । कर्म विहीन होने का मार्ग गुरु के इलावा कोई नही सुझा सकता । गुरु द्वारा बताई गयी युक्ति ही आगे का मार्ग प्रशस्त करती है ।
कुछ लोग सोचते हैं कि गुरु की क्या जरूरत है ?
हम लोग छोटे छोटे काम सीखने के लिए किसी को भी उस्ताद यानि गुरु कहने से नही झिझकते , पर अध्यात्म के मार्ग के लिए मबिना गुरु बिना कैसे चल सकते है , जो कि जटिल मार्ग है ।
साइकिल मिस्त्री बनना हो तो किसी साइकिल के पुराने मिस्त्री की शरण लेनी पड़ती है , स्कूटर मकैनिक बनने हो तो भी । medicle लाइन में डॉक्टर बनना हो या फार्मासिस्ट , शरण गुरु की लेनी हो होगी पर जब परमात्मा प्राप्ति की बात आती है तो " उस्ताद की क्या जरूरत ? " ये डायलाग आम सुनने को मिल जाता है ।
एक व्यक्ति रात के अँधेरे में अपनी गाड़ी ( कार ) से जा रहा था । घुप्प अँधेरा था और उसकी गाड़ी की हैड लाइट खराब हो गयी । इस रास्ते पर वो आया भी पहली बार था , रास्ते की जानकारी न थी । तभी उसे घण्टी की आवाज़ सुनाई दी । यह घण्टी की आवाज़ एक बैल गाड़ी में जुते हुए बैल के गले में बन्धी हुई घण्टी की थी । बैल गाड़ी पास आई तो कार वाले ने उसे अपनी प्रॉब्लम बताई । गाड़ी वान् ने कहा , " चिंता न करो , मेरे पीछे पीछे चलते रहना , अँधेरे से बाहर रौशनी तक तो पहुंच ही जाओगे "
कार वाला बैल गाड़ी के पीछे पीछे चलता हुए अँधेरे स्थान से निकल कर रौशनी वाली जगह तक पहुंच गया , उसने बैल गाड़ी वाले को कई बार शुक्रिया कहा ।
आप सोचें , हम इस संसार में अपनी आवश्यकता अनुसार किसी के भी पीछे हो लेते हैं , हम नही देखते ऊँच नीच या जाति पात इत्यादि , पर जिस मार्ग पर " उसकी " प्राप्ति होनी है , हम उसके लिए मार्ग दर्शक की जरूरत ही महसूस नही करते ।
अगर मेरे लिखे से किसी के हृदय को चोट पहुंची हो तो क्षमा चाहूँगा ।
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