Tuesday, October 28, 2014

man ke khel ( मन के खेल )


मन के खेल
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अब जो आप पढ़ने जा रहे हो , ये भी अदभुत लाल की ही कहानी है ।
अद्भुत लाल की नई नई शादी हुई थी । दुल्हन घर आ गयी । उस समय अद्भुत लाल एक दूकान पर साधारण सी नौकरी करता था । नई नई शादी थी । एक दिन बीवी ने कहा , " कभी कोई फिल्म वगैरह ही दिखा दो ,कहीं घुमाने ही ले जाया करो ।"
एक बार , दो बार तो अद्भुत लाल ले गया , पर उसे चिंता लग गयी कि अगर इसे ले जाऊं तो वेतन पूरा नही पड़ेगा । महीने के आखिरी दिनों में तंग होना पड़ेगा । उसे चिंता लग गयी , कि अभी तो नई नई शादी हुई है , कल को बच्चे भी हो जायेंगे , घर का खर्च कैसे चलेगा ? ये सोच आते ही उसे चिंता सताने लगी । अब क्या करे अद्भुत लाल । अद्भुत लाल के ही गाँव में एक पंडित जी रहते थे जो कि लोगों को भविष्य बताते और अगर कोई उपाए पूछे तो वो भी बता देते थे । अद्भुत लाल ने उन्ही के पास जाने की सोची ताकि आने वाले समय में धन अभाव न रहे ।
अद्भुत लाल अगले दिन ही पंडित जी पास पहुंच गया । पंडित जी ने आने का कारण पूछा तो उसने अपनी समस्या पंडित जी को बता दी ।
पंडित जी ने कहा , , " आपको लक्ष्मी के जाप करने चाहिए , लक्ष्मी के जाप करने से आपको धन अभाव नही होगा , धन कैसे आएगा कहाँ से आएगा , तुम्हे इसकी चिंता करने की कोई जरूरत नही , बस आप जाप करो , सब ठीक रहेगा ।"
" आप बता दो कि जाप करना कैसे है , और जाप जो करना है वह भी बता दो " ।
पंडित जी ने उसे मन्त्र भी दे दिया और सारी विधि भी समझा दी ।
घर आकर अद्भुत लाल ने जाप की तैयारी शुरू कर दी । पत्नी थोड़ी देर तो देखती रही , उससे रहा न गया ,और उसने पूछ ही लिया ," कहाँ जाने की तैयारी हो रही है ? "
" नही , जाना तो कहीं नही है , लक्ष्मी के जाप शुरू करने लगा हूँ , हाथ बहुत तंग रहने लग गया है न , इस लिए ।"
" जाप क्या गुरु जी से लाये हो ? "
" अरी भागवान , अपने गुरुदेव तो बस परमात्मा से मिलने का मार्ग ही बताते हैं , कोई उपाए वगैरह नही सुझाते " ।
 " तो इसका मतलब है कि तुम बिना गुरु की इज़ाज़त लिए ही जाप करोगे ? "
 " शुरुयात तो गुरु वन्दन से ही करूंगा ।"
 " पर गुरुदेव को पता होगा तभी तो कामयाब होवोगे " ।
 " नही ऐसी कोई बात नही है गुरु वन्दना जो पहले हो जायेगी न " ।
 " नही , बिलकुल नही , पहले गुरुदेव से आज्ञा लो , उसके बाद ही जाप करना । "
 " हे भगवान , तू कहाँ से मेरे पल्ले पड़ गयी , हर काम में अड़ जाती है ? "
  " क्या कहा , मैं तुम्हारे पल्ले पड़ी हूँ , मैं पल्ले नही पड़ी हूँ , तुम्ही ने पहले मुझे अपने पल्ले से बंधवाया और बाद में सात फेरे लेकर  अपने साथ यहाँ लाये हो । तुम्हे तो सबने बधाइआँ दी थी और साथ ही सब नाच रहे थे ।तुमने सबकी बधाईआँ कबूल की थीं , समझे ?
  "  भागवान , अब चुप भी कर " ।
" तुम ये जो शुरू करने जा रहे हो , पहले गुरु जी की परमिशन लो ।"

" ठीक है भागवान पहले परमिशन ही ले लेते हैं ।"
 " मैं भी चलूंगी आपके साथ ।"
" ठीक है , तुम भी चलना ।"
और फिर रविवार को दोनों गुरुदेव के आश्रम पहुंच गये ।
सत्संग के बाद दोनों गुरुदेव के सामने खड़े हो गये ।
गुरुदेव ने बहुत ही प्रेम से देखा और हाल पूछा ।
 न्यारो बोली , " बात ऐसी है कि ये जो हैं न , लक्ष्मी के जाप करना चाहते हैं , इस लिए आपके पास परमिशन लेने आए हैं ।"
 अब गुरुदेव सोचने लगे कि अद्भुत लाल कोई न कोई झंझट खड़े करता ही रहता है ।जो मिलना है , वो तो प्रारब्ध अनुसार मिलना ही है । कुछ सोचते हुए गुरुदेव बोले
" देख अद्भुत , हमे तो कोई एतराज़ नही है , पर तुम चाए बहुत पीते हो , याद रखना जाप करते वक्त तुम्हारा ख्याल चाए की तरफ न जाए और न ही तुम्हारे ख्याल में बन्दर ही आए ।नही तो कामयाब नही हो पाओगे । "
 " नही महाराज़ जी , बन्दर और चाए का जाप से तो कोई सम्बन्ध ही नही । उधर खयाल नही जाएगा " ।
" ठीक है , जाओ और जाप शुरू करो ।"
 गुरुदेव के आश्रम से घर वापिस आकर अद्भुत लाल ने बड़े जोरशोर से तैयारी शुरू कर दी ।
पंडित जी की बताई हुई विधि के अनुसार ही रात को आसन लगा लिया और जप शुरू किया ।अभी जप शुरू किया ही था तो मन में आ गया कि अपना ख्याल एक तो बन्दर और दूसरा चाए की तरफ नही जाना चाहिए ।
आँख बंद की और जाप शुरू हुआ ।
एक मिनट भी पूरा न हुआ कि फिर ख्याल आया कि बन्दर और चाए की तरफ ख्याल नही जाना चाहिए ।
मन को समझाया कि लक्ष्मी ,बन्दर और चाए का कोई सम्बन्ध ही नही तो ख्याल उधर कैसे चला जाएगा । अपने इस विचार से खुद को तस्सली दी और जप दुबारा शुरू किया । पर यह क्या , अभी पांच मिनट ही हुए थे कि एक बन्दर हाथ में चाए की प्याली पकड़े हुए आता नज़र आ गया । अद्भुत का ध्यान टूट गया । जाप फिर से शुरू किया और यह पक्का निश्चय कर लिया कि अब कुछ भी हो जाए , अब उठना नही है , बैठे रहना है ।
दुबारा जाप शुरू किया , पहले एक बन्दर आया हाथ में चाए की प्याली पकड़े हुए , थोड़ी देर में एक और आ गया । अद्भुत लाल ने जप बंद नही किया ।
अब क्या था , देखते ही देखते बन्दर ही बन्दर अद्भुत लाल के चारो तरफ चाय की प्यालियाँ लेकर आ गये ।
अद्भुत लाल तो परेशान हो गया , बन्दर और ये चाये की प्यालीँ , अद्भुत को लगने लगा कि ये बन्दर और चाये की प्याली उसकी साधना शुरू ही नही होने दे रहे तो साधना पूरी कैसे होगी । सारी रात जप शुरू करता और फिर बंद करना पड़ता ।
सुबह हो गयी पर अद्भुत जाप शुरू नही कर सका । सुबह उठते ही गुरुदेव के आश्रम की तरफ भागा । न्यारी देवी को भी पता था कि रात को उसके पति के साथ जो गुज़री थी  । न्यारी भी जल्दी से तैयार होकर पीछे पीछे ही आश्रम में पहुंच गयी । गुरुदेव वहीं बाहर खड़े ही मिल गये । अद्भुत ने जाते ही गुरुदेव को सारी बात बताई जो कि रात को उसके साथ गुज़री थी ।
 गुरुदेव ने सारी बात सुनने के बाद अद्भुत से कहा , जब तक तुम चाए और बन्दर की तरफ से ख्याल नही हटाओगे , कामयाब कैसे होवोगे ?
" गुरुदेव आप ही कृपा करो कि ख्याल उधर न जाए " ।
" देखो अद्भुत , जो तुम्हारे प्रारब्ध में है , वो तुम्हे मिलेगा जरूर , तुम जो भी इच्छा लेकर जप करोगे , भगवान तुम्हारी इच्छा तो पूरी कर देंगे पर उस इच्छा पूर्ति के बदले में झंझट भी तो आयेंगे ही ।"
" महाराज़ , झंझट कैसे आ जायेंगे ?
 " मन ही झंझट खड़े करता है । तुमने जो सोचा धन अभाव के बारे में , ये फ़िक्र तुम्हारे मन ने लगाई , और जब तुम धन अभाव दूर करने का उपाए करने लगे तो मन ही बन्दर और मन ही चाय की प्याली बन कर तुम्हारे सामने आन खड़ा हुआ । तुम जब भी यहाँ सत्संग में बैठते हो , तो हर बार एक ही बात समझाई जाती है कि मन बहुत चालबाज़ है । ये हर वक्त उलझाए रखता है । जीव को नचाने में मन को बड़ा रस आता है ।"
" इस मन की बातों में न आया करो , इसे समझाया करो । मन जो है न , ये ही कभी बन्दर बन कर नाचता है , और कभी मदारी बन कर नचाता है ।
सावधान रहा करो , क्योंकि मन ही बन्दर है और मन ही मदारी है । मुझे लगता है कि यहाँ सत्संग में बैठते तो जरूर हो , पर तुम्हारा ध्यान सुनने में कम और सोचने में अधिक होता है ।"
" बिलकुल ठीक गुरूजी , इनका ध्यान सुनने की तरफ नही होता , आपने ठीक पहचाना इनको ।" न्यारी देवी बोली ।
 "  तुम तो सुनती हो न ? " गुरूजी ने पुछा ।
 " मैं तो एक एक शब्द को बड़े गौर से सुनती हूँ ,गुरु जी , इसी लिए तो इन्हें आपके पास से परमिशन लेने को कहा था मैंने ही ।"
 " भगवान् ने इसी लिए शायद हर आदमी के साथ एक औरत लगा दी है । पत्नी गौर से सुने और पति से हर बात जो गुरु ने कही है मनवा ले । आदमी न तो गुरु की कोई बात मानते और न ही बड़ों की , पर ये जो औरत है न ,हर बात मनवा ही लेती है " ।गुरूजी ने हंसते हुए कहा । गुरु देव की बात सुन कर वे दोनों भी मुस्कुराए बिना न रह सके ।

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आपने आज अद्भुत लाल की इस कहानी को पढ़ा , कैसी लगी ? विचार जरूर लिखें ।
धन्यवाद ।
Inder singh ( इंद्र सिंह )

5 comments:

  1. ॐ श्री गुरुवे नमः अद्भुत मन के खेल निराले हैं मन ही संसार और माया जाल है मन में स्थापित मोह माया ने चालाकी से हमें काल के बंधन में बांधे रखा है तथा इस काल के बंधन से आजाद होने के लिए मन केे पार जाना जरूरी है

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    1. To श्री Dharmvir Sharma ,
      उत्तम टिप्पणी के लिए धन्यवाद ।

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  2. MIND IS ENEMY---BUT IS SIMULTANEOUSLY GOOD FRIEND...POINT IS TO LEARN....MAN KI TARANGON KO MODNA HAI.....

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    1. To श्री drsuresh1
      आपके द्वारा लिखी गयी टिप्पणी के लिए धन्यवाद ।
      मन अगर बन्दर है
      तो मन्दिर भी यही है ।

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    2. To श्री drsuresh1
      आपके द्वारा लिखी गयी टिप्पणी के लिए धन्यवाद ।
      मन अगर बन्दर है
      तो मन्दिर भी यही है ।

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