Sunday, March 17, 2013

father and a son

एक बार की बात है कि एक गाँव में एक छोटा सा बालक अपने पिता के संग बहुत खुशहाल हालात में अपने घर आराम से रहता था . एक दिन बालक ने अपने पिता से शहर जाने के लिए कहा . पिता ने समझाया कि शहर अच्छा नहीं होता है . हम अपने गाँव में बहुत सुखी हैं , पर बालक अपनी जिद ठान कर बैठ गया . वह रोने लग गया , वह जिद कर कहने लगा कि शहर में मेला लगा है , सभी मित्रों ने देखा है . हम भी चलेंगे . आखिर पिता को मानना पड़ा , और वह अपने पुत्र को लेकर शहर पहुँच गया .                                                            बालक शहर की रंगीनियाँ देख कर बहुत खुश हुआ .                                                                                      इधर उधर घूमने के
बाद वे मेला देखने भी पहुँच गए . मेले में बहुत झूले थे , खाने को भी बहुत कुछ था . अपने पिता की उंगली पकड़े वह मेले का आनंद लेता रहा , जो कुछ भी वह मांगता पिता लेकर देता रहा . उसे इतनी ख़ुशी पहले कभी नहीं मिली थी . वह इस ख़ुशी में इतना रम गया कि उसे होश ही न रहा कि कब पिता की उंगली छूट गयी . मेले की मस्ती में मस्त , कुछ देर बाद उसे महसूस हुआ कि उस से पिता की उंगली छूट गई थी . अब  उसे रोना आ गया कि वह पिता को कहाँ ढूंढे . सारी रंगीनियाँ वहीँ थी , झूले भी वहीँ थे , खाने पीने का सब सामान वहीँ था , पर उसका रोना बंद नहीं हो रहा था . कुछ ही पलों में उसकी सारी ख़ुशी खत्म हो गयी , कारण ? पिता की ऊँगली  का छूट जाना .                                                                                                          दूसरी तरफ पिता भी दुखी था . उसका पुत्र खो गया था .अब पिता भी पुत्र को खोजने लगा . काफी देर के बाद पिता ने अपने पुत्र को खोज निकाला . अब उसके पुत्र को भी ख़ुशी हुई , कि पिता से उसका पुन: मिलन हो गया .                        इसी प्रकार से हम सभी जीव आत्माएं यहाँ इस संसार में , इस संसार कि रंगीनियो में इतना खो चुके है कि हमें अपने आप का कोई होश नहीं है . होश में वही होता है जिसे यह आभास हो जाता है कि उस से पिता की उंगली छूट चुकी है और वह पिता की खोज शुरू करता . जब हम उसकी खोज शुरू करतें है तब वह भी हमारी खोज शुरू करता है , यानि कि वह हमे सही मार्ग पर चलने में मददगार बनता है .                            हम उसे कभी नहीं ढूँढ सकते , वह ही हमें ढूँढता है . पर शुरुआत हमें ही करनी होती है .    इसी लिए हजरत ईसा ने भी कहा कि तुम खटखटाओ , द्वार तुम्हारे लिए खोला जायेगा . बाबा नानक ने भी कहा है कि तुम उसकी  तरफ एक कदम बढायो वह हज़ार कदम आगे होकर तुम्हे लेने आता है                              .धन्यवाद  



                        

2 comments:

  1. bahut sahi baat boli hai apne. dhanyawad.

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    1. ध्यान से पढ़ने के लिए धन्यवाद ।

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